Sher Shyari

सदियों के बाद है बना, बन्दर से ‘आदमी’ .
शैतां अभी भी लगता है अन्दर से आदमी

इतना गुरूर ना कर दोलत का मैरे दोस्त
पल में फ़क़ीर होता है सिकंदर से आदमी

क़तरे सी हैसियत उसकीं नहीं है फिर भी
अपनी मिसाल देता है समंदर से आदमी

तदबीर बहुत ज़रूरी है, तक़दीर के लियें
अक्सर उम्मीद करे है मुक़द्दर से आदमी

आसाँ बहुत हो जाये फ़िर ज़िंदगी"बिस्मिल"
जीने के हुनर सीखे जो क़लंदर से आदमी

**( अय्यूब खान "बिस्मिल"))**
तदबीर=कोशिश , क़लंदर=फ़क़ीर 



sher o shayri

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